
रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध
रानी लक्ष्मीबाई एक महान वीरांगना थी उन्होंने अपने देश के लिए बहुत से महान कार्य किए हैं, इनका जन्म वाराणसी में 19 नवंबर 1828 को हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन उन्हें प्यार से मनु कहा जाता था।
उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी तांबे था। रानी लक्ष्मीबाई बचपन से युद्ध कला में निपुण थी, ये नाना जी पेशवा राव की मुहबोली बहन थी, इनका बचपन इन्हीं के साथ खेलते कूदते हुए बीता है और इनका पालन-पोषण बिठूर में हुआ था।
बचपन में ही रानी लक्ष्मी बाई के माता का देहांत हो गया जिसकी वजह से उनका जीवन वीर योद्धा पुरुषों के बीच बीता और उन्होंने घुड़सवारी और युद्ध कला की शिक्षा प्राप्त की और बचपन में ही रानी लक्ष्मीबाई बहुत ही ज्यादा अच्छे घुड़सवारी और युद्ध कर लेती थी।
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह राजा गंगाधर राव के साथ उन 1842 ईसवी में हुआ था, विवाह के बाद ही इनका नाम रानी लक्ष्मीबाई पड़ा और 9 वर्ष बाद रानी लक्ष्मीबाई को एक लड़का हुआ जो कि 3 महीने में उसकी मृत्यु हो गई, इसके बाद गंगाधर राव ने 5 वर्षीय दामोदर राव को गोद लिया और पुत्र वियोग में उनकी दशा खराब होती गई और अगले ही दिन उनकी भी मृत्यु हो गई।
जब दामोदर राव को गोद लिया जा रहा था तब अंग्रेज का एक अधिकारी वहां पर उपस्थित था लेकिन राजा की मृत्यु होने के बाद अंग्रेजी सरकार कहती है कि जिस राज्य का कोई उत्तराधिकारी और राजा नहीं होता है तो वह राज्य हमारी अधिकार में आता है।
जब अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई को झांसी छोड़कर जाने के लिए कहा तो रानी लक्ष्मीबाई ने साफ शब्दों में उन्हें कह दिया कि ” झांसी मेरी है और मैं इसे अपने प्राण रहते कभी नहीं छोड़ सकती “
इसके बाद अंग्रेजों ने झासी को मिलाने की बहुत कोशिश की लेकिन रानी लक्ष्मी बाई उनके हर वार को ना काम करती रही इसके बाद जब अंग्रेजों ने अपनी सेना से बहुत बड़ा हमला किया तब भी रानी लक्ष्मीबाई अपनी जमीन को छोड़कर नहीं हटी वह डट कर अंग्रेजों का सामना किया और अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई को कमजोर समझा लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए।
रानी लक्ष्मी बाई युद्ध के मैदान में अपने घोड़े की लगाम को अपने दातों में दबा कर दोनों हाथों में तलवार लेकर अंग्रेजों के सर धड़ से अलग कर रही थी, और एक समय बाद उनका घोड़ा भी घायल हो गया और उसने युद्ध में वीरगति को प्राप्त की, लक्ष्मीबाई के पास तीन घोड़े भी थे, जिनका नाम सारंगी, बादल और पवन था।
रानी लक्ष्मी बाई के कमर पर एक राइफल की गोली लगी थी जिसमें से लगातार खून बह रहा था और उसके बाद उनके सर पर भी बहुत गहरा चोट लगा था जिससे उनके सर से लगातार खून बह रहा था इसके कारण वे अपनी आंखें नहीं खोल पा रही थी।
इसके बाद उनके सेना के कुछ जवानों ने उन्हें पास के एक मंदिर में ले गए जहां पर एक पुजारी जी लक्ष्मी बाई के सूखे होठों पर गंगाजल का पानी रखा और उधर दूसरी तरफ अंग्रेज झांसी के सभी सेनाओं को खत्म करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
उन्हें इतनी ज्यादा चोट लगी थी कि वह सही से बोल भी नहीं पा रही थी उन्होंने अपने दामोदर को सैनिकों को सबसे बड़ा दिन में इसे आपको शक्ति हुए हैं आप छावनी ले जाओ, दामोदर के साथ उन्होंने अपने गले का एक बार उतार कर उन्हे दे दिया।
इसके बाद उन्होंने सैनिकों से कहा कि अंग्रेजों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए यह उनके आखिरी शब्द थे इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुए और सैनिकों ने पास में रखे सभी लकड़ियों को इकट्ठा किया और रानी लक्ष्मीबाई के शव को अग्नि को समर्पित कर दिया।
रानी लक्ष्मीबाई सभी स्त्री जाति के लिए एक प्रेरणा है उन्होंने अपने देश के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी दी, और हमें इनकी वीरता से कुछ सीखना चाहिए।
Good article about eduacationn You may like Mera bharat mahaan essay in hindi